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भोपाल गैस काण्ड के समय कौन शव हिंदू और कौन मुसलमान था और कौन सिख व ईसाई, यह समझना मुश्किल था। किसे कब्र मिली और किसे चिता, यह जानने व पूछने की फुरसत किसी को नहीं थी इस भोपाल नगरी में
लाख की संख्या में आकस्मिक मौतों वाली उस दुर्भाग्यशाली दुर्घटना का नम आंखों से वर्णन किया प्रख्यात चिन्तक एवं लेखक श्री राकेश दुबे ने
उसी भोपाल शहर ने कालान्तर में दंगे के समय कपड़े उतरवाकर संप्रदाय पहचान कर गम्भीर यातना देने व हत्याएं करने की अनेक घटनाएं देखी थीं, सुनी थीं
राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन और भाग्योदय फ़ाउंडेशन ने भारत में भ्रामक स्थितियों व बातों को रोकने एवं राष्ट्रीय एकता के लिए जनजागरण का लिया संकल्प
भोपाल, ०१ मार्च। कल शनिवार को यहां हमारी भेंट एक ऐसे मनस्वी भाई से हुई, जिन्होंने 3 दिसंबर 1984 को हुई भोपाल गैस त्रासदी के सच को अपनी आंखों से देखा था, उन दिनों के उस अकथनीय दर्द को समीप से अनुभव किया था, अपनों के दर्द को बांटा था और बिना कोई भेदभाव के सबके काम आने का प्रयास किया था। वह शख्स हैं मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल निवासी गम्भीर चिन्तक व लेखक श्री राकेश दुबे जी। वह राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन (नई दिल्ली) के प्रमुख संयोजक हैं। उन्होंने बताया कि एक पत्रकार के रूप में उन घटनाओं को कवर करने वह वाला मैं एक अनूठा भोपालवासी था, जिसने अपने हाथों से अनेकानेक शवों का अंतिम संस्कार किया था।
श्री दुबे बोले- हमने देखा था कि अमेरिकी कम्पनी ‘यूनियन कार्बाइड’ से भारी मात्रा में निकली मिथाइल आइसोसाइनाइट गैस से बहुत बड़ी संख्या में मौतों वाली उस घटना के समय अनेक अवसरों पर उन मृतकों में हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई का अन्तर करने वाले व्यक्ति नहीं मिलते थे। हम सबका भरसक प्रयास यह होता था कि दिवंगतों की अंत्येष्टि उनके धर्म - मजहब के हिसाब से हो, लेकिन कौन पार्थिव शरीर चिता पर चढ़ गए और किन्हें कब्र मिली, यह बता पाना बेहद मुश्किल है। किसी की भी स्थिति यह देखने और जानने की नहीं थी। बस ध्यान केवल इस पर था कि मृत शरीरों का अंतिम संस्कार जल्द से जल्द हो।
वाराणसी (उ.प्र.) से तीन पीढ़ी पहले भोपाल आकर बसे दुबे परिवार के तपस्वी सदस्य श्री राकेश दुबे ने १५-२० हजार मौतों के सरकारी आंकड़ों से इतर लगभग दो लाख मौतों की बात कही। यह भी बताया, तब के एसपी भोपाल श्री स्वराज पुरी (जो बाद में प्रांत के डीजीपी बने) ने स्वयं एक लाख से ज्यादा निरीहों की मृत्यु की बात मुझे बताई थी। वे पूर्व आईपीएस अफसर अभी मौजूद हैं और एक पुस्तक का लेखन कर उसमें उन तथ्यों का समावेश कर रहे हैं।
श्री दुबे जी उन पुरानी यादों में खो गए और बताया कि वे दृश्य अक्सर ख्यालों में आते हैं, जब लगभग पांच किलोमीटर दूरी में सैकड़ों चिताएं एक साथ जल रही थीं।एक - एक चिता पर कई - कई शरीरों का संस्कार करना पड़ रहा था। उधर जमीन कम पड़ जाने के कारण एक - एक कब्र में ऊपर - नीचे पार्थिव शरीर रखकर उन्हें दफन करना पड़ रहा था। वह बोले - उन पलों में मजहबों की सारी दीवारें टूट गई थीं और केवल और केवल *मानव* नजर आ रहा था।
श्री राकेश दुबे ने नम आंखों से बताया कि उसी भोपाल शहर ने बाद में एक दिन वह दृश्य भी देखे थे जब सांप्रदायिक दंगे के दौरान लोगों के कपड़े उतरवाकर उनका धर्म जानकर उनको प्रताड़ित किया गया था, मारा गया था। वह बोले - काश...!!! हम ईश्वरीय दण्ड व्यवस्था के मर्म को समझ सकें। श्री दुबे की इन बातों को सुनने के बाद सोचता हूं कि काश...!!! हम यह समझ सकें कि भारत में महाभारत करा देने वाले लोगों के राजमहल आज विशाल और बेतरतीब टीले के रूप में आंसू बहा रहे हैं। बीते दिनों हस्तिनापुर में जाकर हमने उन सबको देखा था। दुनिया को जीत लेने वाले इतिहासप्रसिद्ध आक्रांताओं की क़ब्रों पर आज कोई दीपक जलाने नहीं जाता, फूल चढ़ाने नहीं जाता।
श्री राकेश दूबे और हमारी चर्चा में यह निर्णय लिया गया कि भारत स्वाभिमान आंदोलन तथा भाग्योदय फाउंडेशन द्वारा देश के सभी वर्गों का आह्वान किया जाए कि सब शान्ति से काम लें और इस क्षण-भंगुर जीवन में बुराइयों और पाप इकठ्ठे करने की बजाय मानवोचित जिन्दगी जीकर पुण्य एवं यश के भागी बनें, सृष्टि की दण्ड व्यवस्था से डरें। भारत को भारत के हिसाब से जीने दें, यहां बाहरी संस्कृतियों को अनहक़ थोपने का कोई प्रयास न हो। यह देश प्यार बाँटना जानता है, एक होकर रहना जानता है और एक होकर रह लेगा। बस ज़रूरत इस बात की है कि सभी अपने-अपने मत और विचारधारा पर दृढ़ता के साथ टिके रहकर अन्य मत-विचारों का समादर करें। इस सम्बन्ध में देश की समविचार वाली विभिन्न संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करने का प्रयास किया जायेगा।
*✍ कौशलेंद्र वर्मा।*